क्या एम.जे. अकबर द्वारा मोदी की हिटलर से तुलना भाजपा को रह-रहकर परेशान करेगी?

–फर्स्ट पोस्ट.कॉम से साभार- ”विगत 10 वर्षों में कोई भी दूसरा राजनेता इतनी अधिक जांच से नही गुजरा जितने मोदी इनसे गुजरे है। उनकी जांच पुलिस,केन्द्र सरकार, सी.बी.आई., कोर्ट द्वारा नियुक्त संस्थाओं द्वारा की गई। और उन लोगों के द्वारा भी जिन्होने इस मुद्दे को पूरे समय उठाये रखा। मैं उन सब लोगों से कहना […]

Publish: Jan 07, 2019, 10:36 PM IST

क्या एम.जे. अकबर द्वारा मोदी की हिटलर से तुलना भाजपा को रह-रहकर परेशान करेगी?
क्या एम.जे. अकबर द्वारा मोदी की हिटलर से तुलना भाजपा को रह-रहकर परेशान करेगी?
- span style= color: #ff0000 font-size: large फर्स्ट पोस्ट.कॉम से साभार- /span p style= text-align: justify strong वि /strong गत 10 वर्षों में कोई भी दूसरा राजनेता इतनी अधिक जांच से नही गुजरा जितने मोदी इनसे गुजरे है। उनकी जांच पुलिस केन्द्र सरकार सी.बी.आई. कोर्ट द्वारा नियुक्त संस्थाओं द्वारा की गई। और उन लोगों के द्वारा भी जिन्होने इस मुद्दे को पूरे समय उठाये रखा। मैं उन सब लोगों से कहना चाहूँगा कि वे गुजरात दंगों पर दी गई जस्टिस वी.आर. कृष्णा की रिपोर्ट पढ़े। /p p style= text-align: justify यह बात जाने-माने पत्रकार और एक बार किशनगंज से कांग्रेस के प्रत्याशी रहे एम.जे. अकबर ने शनिवार को भाजपा में शामिल होने के बाद कही। हो सकता है कि अकबर उन सभी को जस्टिस कृष्णा की गुजरात दंगों पर दी गई रिपोर्ट पढ़वाना चाहते हो जो मोदी के रिकार्ड पर शक करते है। किन्तु जो लोग अकबर पर शक करते है वे उनके द्वारा मोदी और गुजरात पर लिखे गये पुराने लेख पढ़ रहे है। उन्ही में से एक लेख 2002 में अकबर द्वारा लिखा गया था -- मोदी एक ऐसी विचारधारा के है जिसमें एक खास फर्क है। उन्माद का फर्क। एक तीक्ष्ण उन्माद है जो सम्मोहित कर सकता है और आसानी से एक अहंकारोन्माद में बदल जाता है जो राजनेताओं को यह विश्वास दिलाता है कि वे कथित शत्रु के विरूध्द एक विनाशकारी सनक के माध्यम से व्यापक तौर पर भलाई का कार्य कर रहे है। हिटलर के मामले में शत्रु यहूदी था मोदी के मामले में शत्रु मुसलमान है। ऐसा राजनेता मूर्ख नही होता। वास्तव में वह बहुत ऊॅंची बुध्दिवाला हो सकता है किन्तु यह बुध्दि तर्कों से परे है और मानवता के संस्कारों से विहीन है। /p p style= text-align: justify एम.जे. अकबर अतीत में मोदी की कटु आलोचना कर चुके है। सच कहें तो एम.जे. अकबर ने कांग्रेस की भी कटु आलोचना यह आरोप लगते हुए की थी कि वह मोदी के मतदाताओं तथा अपने हाल पर जी रहे मुसलमानों को लुभाने के लिये गुजरात में नरम हिन्दुत्व को अपना रही है। राहुल गाँधी द्वारा मोदी की हिटलर से तुलना करने पर भाजपा ने चुनावी मौसम में उन पर तीक्ष्ण बाण छोड़े वहीं दूसरी ओर एक ऐसे पत्रकार को बगैर किसी सवाल के स्वागत करते हुये अपनी जमात में शामिल कर लिया जिसने भी कभी मोदी की तुलना हिटलर से की थी। /p p style= text-align: justify अब हर व्यक्ति को अपना मत बदलने का अधिकार है किन्तु एम.जे. अकबर जैसे व्यक्ति के लिये यह जरूरी है कि वे पूर्व में कहे गये अपने शब्दों को वापस लें। मोदी आज विकास के बारे में अधिक बातें कर सकते है तथा हिन्दुत्व के बारे में कम चाहे वह उनके लिये बेहतर हो या खराब किन्तु वे बदले नही है। इसलिये एम.जे. अकबर को यह स्पष्ट करना होगा कि वे क्यों बदल गये है? क्या एम.जे. अकबर यह कहेंगे कि मैं गलत था। /p p style= text-align: justify शिक्षाविद् विजय प्रसाद ट्वीट करते है -- इन दो दशकों के दौरान एम.जे. अकबर गुजरात में मोदी की भूमिका को लेकर उनके प्रखर आलोचक थे। वे अपने ही दृष्टिकोण को इतनी जल्दी कैसे भूल गये? /p p style= text-align: justify सदानंद धुमे ने ट्वीट किया है -- हो सकता है कि जसवंत सिंह के बदले एन.के. सिंह और एम.जे. अकबर को लेना भाजपा के लिये एक अच्छा सौदा हो। वे पुन: लिखते है -- यदि भाजपा और अधिक स्वतंत्र होना चाहती है उसे जसवंत जैसे लोगों की जरूरत है यदि वह और अधिक कांग्रेस जैसी होना चाहती है तो एन.के. सिंह और एम.जे. अकबर इस हेतु काम करेंगे। /p p style= text-align: justify एम.जे. अकबर भाजपा के प्रवक्ता बन सकते है किन्तु उन्हे भाजपा और नरेन्द्र मोदी के बारे में विश्वासपूर्वक बात करने से पहले स्वयं के बारे में और अपने हृदय परिवर्तन के बारे में लोगों को समझाने में अधिक समय व्यतीत करना पड़ेगा। /p p style= text-align: justify शायद एम.जे. अकबर यह सोच रहें हो कि आज उनका कॉलम खुशवंत सिंह को श्रध्दांजलि दे रहा है। खुशवंत ने विचारधारा की बजाय विचारों को प्राथमिकता दी। एक तरह से वे पूर्णतया असैध्दांतिक थे। उन्होने वामपंथी नजरिये से सोचा जो उनके जमाने में एक बौध्दिक फेशन थी। वे व्यक्तिगत स्वतंत्रता के सहज विरोधी थे जिसको उन्होने अव्यवहारिक सोच में फंसे होने के कारण उपरोक्त सभी से अधिक महत्व दिया। वे सिध्दान्तों को एक सिंगारदान की तरह देखते थे जो सिर्फ कब्र के लिये उपयुक्त है। /p p style= text-align: justify किन्तु हर्षोंत सिंह बल अत्यंत तीखा ट्वीट करते है -- जहाँ एम.जे. यह उल्लेख करना भूल जाते है कि खुशवंत सिंह का विचारधारा के मामले में स्पष्ट नजरिया था वहीँ अकबर का उससे सहमत होना उपयुक्त लगता है। /p p style= text-align: justify अकबर अपने बचाव में यह कह सकते है कि अब उनके लेखों में से जो भी सामने आ रहे है वे बहुत समय पहले के है। और जैसा कि उन्होने भाजपा में शामिल होते वक्त सचमुच कहा भी कि तब से अब तक बहुत कुछ बदल चुका है। उन्होने जो भी लिखा उसमें से कुछ को छोड़कर आश्चर्यचकित करने वाले भविष्य सूचक लेख है जो भाजपा के नये नेता के लिये थोड़े असहज है। /p p style= text-align: justify यदि मोदी की बड़ी जीत होती है तो वे समूची भाजपा को अपने गुजरात अनुभव के संस्करण में बदलने की तत्काल कोशिश करेंगे। वे पहले ही अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का प्रत्यक्ष रूप से तिरस्कार करते है। एक कारण जिसकी वजह से आडवाणी के समर्थक कम हो गये वह यह था कि मोदी अपने आधिकारिक बोस के समक्ष यह सिध्द करना चाहते थे कि गुजरात मे मोदी ने ही वहां अपनी धाक जमायी। दिल्ली से कोई वहां उनकी मदद करने नही आया था। मोदी अपनी ही पार्टी के भीतर एक चुनौती खड़ी करेंगे और इसमें उन्हे कुछ मदद भी मिलेगी। वे गुजरात विजय की तर्ज पर राष्ट्रीय विजय के बाद भारत के प्रधानमंत्री बनने का सपना देखेंगें। वे भारत में हर जगह स्वयं को गोधारा सहित पंहुचाने के लिये आतंकवादियों पर निर्भर होंगे। /p p style= text-align: justify इस सपने में कमी या त्रुटि यह है कि मोदी दिल्ली के करीब पंहुचने से बहुत पहले वे भाजपा को नष्ट कर चुके होंगे। एम.जे. अकबर को बहुत सारी बातें स्पष्ट करनी होगी। किन्तु फिलहाल उनका टाइम्स ऑफ इंडिया में लंबे समय से छपता आ रहा कालम इस सप्ताह के बाद नही होगा। उनके राजनीतिक दल में शामिल होने के बाद यह पहली त्रासदी होगी। /p